यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 5
ब्रह्म॑ क्ष॒त्रं प॑वते॒ तेज॑ऽइन्द्रि॒यꣳ सुर॑या॒ सोमः॑ सु॒तऽआसु॑तो॒ मदा॑य। शु॒क्रेण॑ देव दे॒वताः॑ पिपृग्धि॒ रसे॒नान्नं॒ यज॑मानाय धेहि॥५॥
स्वर सहित पद पाठब्रह्म॑। क्ष॒त्रम्। प॒व॒ते॒। तेजः॑। इ॒न्द्रि॒यम्। सुर॑या। सोमः॑। सु॒तः। आसु॑त॒ इत्याऽसु॑तः। मदा॑य। शु॒क्रेण। दे॒व॒। दे॒वताः॑। पि॒पृ॒ग्धि॒। रसे॑न। अन्न॑म्। यज॑मानाय। धे॒हि॒ ॥५ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ब्रह्म क्षत्रम्पवते तेजऽइन्द्रियँ सुरया सोमः सुतऽआसुतो मदाय । शुक्रेण देव देवताः पिपृग्धि रसेनान्नँयजमानाय धेहि ॥
स्वर रहित पद पाठ
ब्रह्म। क्षत्रम्। पवते। तेजः। इन्द्रियम्। सुरया। सोमः। सुतः। आसुत इत्याऽसुतः। मदाय। शुक्रेण। देव। देवताः। पिपृग्धि। रसेन। अन्नम्। यजमानाय। धेहि॥५॥
विषय - अभिषिक्त के कर्त्तव्य ।
भावार्थ -
( सुरया ) सुखपूर्वक रमण करने योग्य ऐश्वर्य, राज्यलक्ष्मी या उत्तम प्रजा द्वारा ( सुतः ) अभिषिक्त किया और ( मदाय ) आनन्द प्रसन्नता के लिये (आसुतः) प्रत्यक्ष रूप से सर्वत्र अभिषिक्त हुआ (सोमः) सोम, ऐश्वर्यवान् पुरुष (ब्रह्म) ब्रह्म, ब्राह्मण वर्ग, (क्षत्रं) क्षत्रियगण को ( पवते) पवित्र करता है और (तेजः) तेज, पराक्रम और ( इन्द्रियम् ) इन्द्रिय, राजोचित ऐश्वर्य को भी ( पवते) उत्पन्न करता है । हे (देव) देव, दानशील, राजन् ! तू (शुक्रेण) शुद्ध करने वाले, तेज या सुवर्णादि द्रव्य से (देवताः) दानशील या विजिगीषु वीर पुरुषों और विद्वानों को (पिपृग्धि) पूर्ण कर, पालन कर और (रसेन) रस, पुष्टिकारक अंश से युक्त (अन्नम् ) अन्न (यजमानाय ) यजमान, दानशील या अपने से संगत प्रजाजन के लिये (धेहि) सुरक्षित रख । शत० १२ । ७ । ३ । १२ ॥
सोम - ओषधि सवन क्रिया से उत्पादित सोम, ओषधि रस तेज, इन्द्रियों के बल को उत्पन्न करता है । तेजोवृद्धि करने वाले वीर्य रस से प्राणों की शक्ति को बढ़ाता है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - सोमः । निचृज्जगती । निषादः ।
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