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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 90
    ऋषिः - त्रित ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - निचृद् बृहती स्वरः - मध्यमः
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    च॒न्द्रमा॑ऽअ॒प्स्वन्तरा सु॑प॒र्णो धा॑वते दि॒वि। र॒यिं पि॒शङ्गं॑ बहु॒लं पु॑रुस्पृह॒ꣳ हरि॑रेति॒ कनि॑क्रदत्॥९०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    च॒न्द्रमाः॑। अ॒प्स्वित्य॒प्ऽसु। अ॒न्तः। आ। सु॒प॒र्णःऽइति॑ सुऽप॒र्णः। धा॒व॒ते॒। दि॒वि ॥ र॒यिम्। पि॒शङ्ग॑म्। ब॒हु॒लम्। पु॒रु॒स्पृह॒मिति॑ पु॒रु॒ऽस्पृह॑म्। हरिः॑। ए॒ति॒। कनि॑क्रदत् ॥९० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    चन्द्रमाऽअप्स्वन्तरा सुपर्णा धावते दिवि । रयिम्पिशङ्गम्बहुलम्पुरुस्पृहँ हरिरेति कनिक्रदत् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    चन्द्रमाः। अप्स्वित्यप्ऽसु। अन्तः। आ। सुपर्णःऽइति सुऽपर्णः। धावते। दिवि॥ रयिम्। पिशङ्गम्। बहुलम्। पुरुस्पृहमिति पुरुऽस्पृहम्। हरिः। एति। कनिक्रदत्॥९०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 90
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    भावार्थ -
    जैसे ( चन्द्रमाः) चन्द्रमा (अप्सु अन्तरा ) जलों या जलमय मेघों या अन्तरिक्ष में गति करता है और (सुपर्णः) उत्तम किरणों से युक्त सूर्य या उत्तम पक्षों से युक्त विशाल पक्षी (दिवि धावते) आकाश में गति करता है और जिस प्रकार ( कनिक्रदत् ) खुब गर्जना करता हुआ (हरिः) सिंह, या हिनहिनाता हुआ अश्व गति करता है और तीनों में से प्रत्येक (पिशङ्गम् ) सुवर्ण के समान उज्ज्वल ( बहुलम् ) बहुत अधिक (पुरु स्पृहम् ) बहुतों को अच्छा लगने हारा मनोहर रूप धारण करता है उसी प्रकार राजा, सभाध्यक्ष (अप्सु अन्तरा ) आप्त प्रजाजनों के बीच (चन्द्रमाः) चन्द्र के समान आह्लादक कान्ति से युक्त होकर और (दिवि ) ज्ञान प्रकाश में या राजसभा में (सुपर्णः) उत्तम पालन और ज्ञानमय साधनों से युक्त होकर सूर्य या महागरुड़ के समान विजयी होकर (धावते) गति करे और वह (हरिः) अश्व या सिंह के समान सबको आगे ले जाने में समर्थ, सब का मन हरने हारा, सबके दुःखों का नाशक होकर ( कनिक्रदत् ) गर्जन करता हुआ (पिशङ्गम् ) सुवर्ण के समान उज्ज्वल, ( बहुलम् ) बहुत अधिक ( पुरुस्पृहम् ) बहुतों से वाञ्छित (एवम्) सबकी इच्छानुकूल ( रयिम् एति ) ऐश्वर्य को प्राप्त करता है । जैसे ( चन्द्रमाः) चन्द्रमा (अप्सु अन्तरा ) जलों या जलमय मेघों या अन्तरिक्ष में गति करता है और (सुपर्णः) उत्तम किरणों से युक्त सूर्य या उत्तम पक्षों से युक्त विशाल पक्षी (दिवि धावते) आकाश में गति करता है और जिस प्रकार ( कनिक्रदत् ) खुब गर्जना करता हुआ (हरिः) सिंह, या हिनहिनाता हुआ अश्व गति करता है और तीनों में से प्रत्येक (पिशङ्गम् ) सुवर्ण के समान उज्ज्वल ( बहुलम् ) बहुत अधिक (पुरु स्पृहम् ) बहुतों को अच्छा लगने हारा मनोहर रूप धारण करता है उसी प्रकार राजा, सभाध्यक्ष (अप्सु अन्तरा ) आप्त प्रजाजनों के बीच (चन्द्रमाः) चन्द्र के समान आह्लादक कान्ति से युक्त होकर और (दिवि ) ज्ञान प्रकाश में या राजसभा में (सुपर्णः) उत्तम पालन और ज्ञानमय साधनों से युक्त होकर सूर्य या महागरुड़ के समान विजयी होकर (धावते) गति करे और वह (हरिः) अश्व या सिंह के समान सबको आगे ले जाने में समर्थ, सब का मन हरने हारा, सबके दुःखों का नाशक होकर ( कनिक्रदत् ) गर्जन करता हुआ (पिशङ्गम् ) सुवर्ण के समान उज्ज्वल, ( बहुलम् ) बहुत अधिक ( पुरुस्पृहम् ) बहुतों से वाञ्छित (एवम्) सबकी इच्छानुकूल ( रयिम् एति ) ऐश्वर्य को प्राप्त करता है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - त्रित ऋषिः । इन्द्रो देवता । निचृद् बृहती । मध्यमः ॥

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