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  • यजुर्वेद - अध्याय 8/ मन्त्र 58
    ऋषिः - वसिष्ठ ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - भूरिक् आर्षी जगती, स्वरः - निषादः
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    विश्वे॑ दे॒वाश्च॑म॒सेषून्नी॒तोऽसु॒र्होमा॒योद्य॑तो रु॒द्रो हू॒यमा॑नो॒ वातो॒ऽभ्यावृ॑तो नृ॒चक्षाः॒ प्रति॑ख्यातो भ॒क्षो भक्ष्यमा॑णः पि॒तरो॑ नाराश॒ꣳसाः॥५८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्वे॑। दे॒वाः। च॒म॒सेषु॑ उन्नी॑त॒ इत्युत्ऽनी॑तः। असुः॑। होमा॑य। उद्य॑त॒ इत्युत्ऽय॑तः। रु॒द्रः। हू॒यमा॑नः। वातः॑। अभ्यावृ॑त॒ इत्य॑भि॒ऽआवृ॑तः। नृ॒चक्षा॒ इति॑ नृ॒ऽचक्षाः॑। प्रति॑ख्यात॒ इति॒ प्रति॑ऽख्यातः। भ॒क्षः। भ॒क्ष्यमा॑णः। पि॒तरः॑। ना॒रा॒श॒ꣳसाः ॥५८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वे देवा श्चमसेषून्नीतोसुर्हामायोद्यतो रुद्रो हूयमानो वातो भ्यावृत्तो नृचक्षाः प्रतिख्यातो भक्षो भक्ष्यमाणः पितरो नाराशँसाः सन्नः सिन्धु॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वे। देवाः। चमसेषु उन्नीत इत्युत्ऽनीतः। असुः। होमाय। उद्यत इत्युत्ऽयतः। रुद्रः। हूयमानः। वातः। अभ्यावृत इत्यभिऽआवृतः। नृचक्षा इति नृऽचक्षाः। प्रतिख्यात इति प्रतिऽख्यातः। भक्षः। भक्ष्यमाणः। पितरः। नाराशꣳसाः॥५८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 8; मन्त्र » 58
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    भावार्थ -

     ( चमसेषु उन्नीतः ) भिन्न २ पात्रों में अर्थात् राज्य के भिन्न भिन्न अंगों में बंटा हुआ राजपद ( विश्वे देवाः ) ' विश्वेदेव' अर्थात् समस्त विद्वान् राज्यदाधिकारियों के रूप से रहता है । ( होमाय उधतः ) होम 
     आहुति करने के लिये उद्यत अर्थात् युद्ध करने के लिये उद्यत राजा (असुः ) ' असु' शस्त्र प्रक्षेता धनुर्धर के रूप में होता है | ( हूयमानः रुद्धः ) जब वह युद्ध में आहुति होजाता है तब वह 'रुद' दुष्टों को रुलाने में समर्थ ' रुद्र' रूप होजाता है । ( अभि आवृत्तः ) जब साक्षात् सामने वेग से आक्रमण कर रहा होता है तब वह ( वातः ) 'वात', प्रचण्ड वायु के समान 'वात' रूप साक्षात् 'आँधी' होता है । अथवा (अभि आवृतः ) जब राजा प्रजा को या परराष्ट्र को चारों ओर से घेर लेता है तब वह ( वात: ) बात वायु के समान उसको घेरता है । ( प्रतिख्यातः प्रत्येक पुरुष को देखनेवाला होने से वह ( नृचक्षा : ) मनुष्यों का निरीक्षक 'नृचक्षा' कहाता है । ( भक्ष्यमाणः भक्षः) जब समस्त प्रजाजन उसके राजत्व का सुख भोगते हैं तब वह 'भक्ष' सब राष्ट्र का भोक्ता कहाता है । तब ( नाराशंसाः ) सभी उसकी प्रजा के लोग उसकी प्रशंसा करते हैं और नाना प्रकार से वह प्रजा का पालन करता है इसलिये वही राजा ( पितरः ) पितृगणों या प्रजापालकों के रूप में प्रकट होता है । 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    ऋषिदेव पूर्वोक्ते । भुरिगार्षी जगती | निषादः ॥ 

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