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  • यजुर्वेद - अध्याय 28/ मन्त्र 39
    ऋषिः - सरस्वत्यृषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - निचृत् शक्वरी स्वरः - धैवतः
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    दे॒वीऽऊ॒र्जाहु॑ती॒ दुघे॑ सु॒दुघे॒ पय॒सेन्द्रं॑ वयो॒धसं॑ दे॒वी दे॒वम॑वर्धताम्।प॒ङ्क्त्या छन्द॑सेन्द्रि॒यꣳ शु॒क्रमिन्द्रे॒ वयो॒ दध॑द् वसु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य वीतां॒ यज॑॥३९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वीऽइति॑ दे॒वी। ऊ॒र्जाहु॑ती॒ इत्यू॒र्जाऽआ॑हुती। दुघे॒ऽइति॒ दुघे॑। सु॒दुघे॒ इति॑ सु॒ऽदुघे॑। पय॑सा। इन्द्र॑म्। व॒यो॒धस॒मिति॑ वयः॒ऽधस॑म्। दे॒वीऽइति॑ दे॒वी। दे॒वम्। अ॒व॒र्ध॒ता॒म्। प॒ङ्क्त्या। छन्द॑सा। इ॒न्द्रि॒यम्। शु॒क्रम्। इन्द्रे॑। वयः॑। दध॑त्। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। वी॒ता॒म्। यज॑ ॥३९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवीऽऊर्जाहुती दुघे सुदुघे पयसेन्द्रँवयोधसन्देवी देवमवर्धताम् । पङ्क्त्या च्छन्दसेन्द्रियँ शुक्रमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वीताँयज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देवीऽइति देवी। ऊर्जाहुती इत्यूर्जाऽआहुती। दुघेऽइति दुघे। सुदुघे इति सुऽदुघे। पयसा। इन्द्रम्। वयोधसमिति वयःऽधसम्। देवीऽइति देवी। देवम्। अवर्धताम्। पङ्क्त्या। छन्दसा। इन्द्रियम्। शुक्रम्। इन्द्रे। वयः। दधत्। वसुवन इति वसुऽवने। वसुधेयस्येति वसुऽधेयस्य। वीताम्। यज॥३९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 28; मन्त्र » 39
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    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ - हे विद्वान महोदय, (दुघे) पदार्थांची पूर्ती करणार्‍या आणि (सुदुघे) सुंदररीत्या कामना पूर्ण करणार्‍या आणि (देवी) सुगंध देणार्‍या (ऊर्जाहुती) सुसंस्कारित अन्नाच्या दोन (वा अधिक) आहुती जशा (पयसा) जलवृष्टीद्वारा (अवर्धयताम्) (अन्न, वनस्पती आदीनां) वाढवितात, तसेच (वयोधसम्) प्राणधारी प्राणी (इन्द्रम्) जीवाला वाढवितो आणि जसे (देवी) एक पतिव्रता स्त्री (देवम्) अव्यभिचारी व सद्चरित्र पतीला उन्नतीकडे नेते (तसे आहूती जलवृष्टी वाढविते) (पङ्क्तया) (छन्दसा) पंक्ति नामक छंदाने (इन्द्रे) जीवात्म्यासाठी (शुक्रम्) पराक्रम आणि (इन्द्रियम्) धन (वीताम्) त्या आहूतीना त्या विदुषी स्त्रिया वाढवितात. (वसुधेयस्य) धनकोषातून (वसुवने) धनाची कामना करणार्‍या व्यक्तीला (वयः) प्रिय सुख (दधत्) देत (त्याला अपेक्षित धन देत) (दाज) हे याज्ञिक विद्वान, आपणही यज्ञ करा ॥39॥

    भावार्थ - भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. हे मनुष्यांनो, ज्याप्रमाणे यज्ञाग्नीत टाकलेली आहुती मेघमंडळापर्यंत जाऊन तेथे शुद्ध झालेल्या जलाद्वारे सर्व विद्वानांनी सर्व लोकांना तृप्त व पुष्ट करावे ॥39॥

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