Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 28/ मन्त्र 41
    ऋषिः - सरस्वत्यृषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - भुरिग् जगती स्वरः - निषादः
    1

    दे॒वीस्ति॒स्रस्ति॒स्रो दे॒वीर्व॑यो॒धसं॒ पति॒मिन्द्र॑मवर्धयन्।जग॑त्या॒ छन्द॑सेन्द्रि॒यꣳ शूष॒मिन्द्रे॒ वयो॒ द॒ध॑द् वसु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य व्यन्तु॒ यज॑॥४१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वीः। ति॒स्रः। ति॒स्रः। दे॒वीः। व॒यो॒धस॒मिति॑ वयः॒ऽधस॑म्। पति॑म्। इन्द्र॑म्। अ॒व॒र्ध॒य॒न्। जग॑त्या। छन्द॑सा। इ॒न्द्रि॒यम्। शूष॑म्। इन्द्रे॑। वयः॑। दध॑त्। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। व्य॒न्तु॒। यज॑ ॥४१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवीस्तिस्रस्तिस्रो देवीर्वयोधसम्पतिमिन्द्रमवर्धयन् । जगत्या च्छन्दसेन्द्रियँ शूषमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देवीः। तिस्रः। तिस्रः। देवीः। वयोधसमिति वयःऽधसम्। पतिम्। इन्द्रम्। अवर्धयन्। जगत्या। छन्दसा। इन्द्रियम्। शूषम्। इन्द्रे। वयः। दधत्। वसुवन इति वसुऽवने। वसुधेयस्येति वसुऽधेयस्य। व्यन्तु। यज॥४१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 28; मन्त्र » 41
    Acknowledgment

    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ - हे विद्वान महोदय, जशा (तिस्रः) तीन (देवीः) तेजस्विनी विदुषी स्त्रिया म्हणजे (तिस्रः) अध्यापन, उपदेश करणार्‍या आणि परीक्षा घेणार्‍या (देवीः) विदुषी स्त्रिया (वयोधसम्) (प्रजेचा) जीवनाधार (पतिम्) आणि रक्षक (इन्द्रम्) उत्तम ऐश्‍वर्यवान चक्रवर्ती राजाला (अवर्धयन्) वाढवतात (उत्कर्षामधे सहायक होतात) तशा प्रकारे (व्यन्तु) इतरांनीदेखील (यत्न करावेत) तसेच (जगत्या, छन्दासा) जगती नामक छंदाद्वारे (इन्द्रे) आपल्या आत्म्यात (शूषम्) वयः) शत्रुसैन्याला ध्वस्त करणार्‍या आपल्या शक्तीचा आणि (इन्द्रियम्) कान आदी इंद्रियांना (दधत्) धारणकरीत (वसुधेयस्य) धनकोषातून (वसुवने) धन देण्यासाठी (यज) तुम्ही यत्न करा वा यज्ञ करा ॥41॥

    भावार्थ - भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. ज्याप्रमाणे अध्यापक आणि उपदेशन आणि परीक्षण करणारे स्त्री-पुरूषानी प्रजेत विद्येचा आणि श्रेष्ठ उपदेशाचा प्रचार करावा, तसेच राजाने या तिघांच्या रक्षणाचे सर्व उपाय करावेत. याप्रकारे राजपुरूष आणि प्रजाजन यांनी एकमेकावर प्रसन्न असावे आणि सर्वतः उत्कर्ष प्राप्त करावा. ॥41॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top