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  • यजुर्वेद - अध्याय 28/ मन्त्र 40
    ऋषिः - सरस्वत्यृषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - अतिजगती स्वरः - निषादः
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    दे॒वा दैव्या॒ होता॑रा दे॒वमिन्द्रं॑ वयो॒धसं॑ दे॒वौ दे॒वम॑वर्धताम्।त्रि॒ष्टुभा॒ छन्द॑सेन्द्रि॒यं त्विषि॒मिन्द्रे॒ वयो॒ दध॑द् वसु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य वीतां॒ यज॑॥४०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वा। दैव्या॑। होता॑रा। दे॒वम्। इन्द्र॑म्। व॒यो॒धस॒मिति॑ वयः॒ऽधस॑म्। दे॒वौ। दे॒वम्। अ॒व॒र्ध॒ता॒म्। त्रि॒ष्टुभा॑। त्रि॒ऽस्तुभेति॑ त्रि॒ऽस्तुभा॑। छन्द॑सा। इ॒न्द्रि॒यम्। त्विषि॑म्। इन्द्रे॑। वयः॑। दध॑त्। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। वी॒ता॒म्। यज॑ ॥४० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवा दैव्या होतारा देवमिन्द्रँवयोधसन्देवौ देवमवर्धताम् । त्रिष्टुभा छन्दसेन्द्रियन्त्विषिमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वीताँयज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देवा। दैव्या। होतारा। देवम्। इन्द्रम्। वयोधसमिति वयःऽधसम्। देवौ। देवम्। अवर्धताम्। त्रिष्टुभा। त्रिऽस्तुभेति त्रिऽस्तुभा। छन्दसा। इन्द्रियम्। त्विषिम्। इन्द्रे। वयः। दधत्। वसुवन इति वसुऽवने। वसुधेयस्येति वसुऽधेयस्य। वीताम्। यज॥४०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 28; मन्त्र » 40
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    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ - हे (होतारा) दानशील अध्यापक आणि उपदेशक लोकहो, ज्याप्रमाणे (दैव्या) कामनापूर्तीमधे कुशल असलेले (देवा) कामनीय दोन विद्वान (वयोधसम्) आयुष्य वाढविणारे असून (देवम्) कामना करणार्‍या (इन्द्रम्) जीवात्म्याला (वाढवितात-कामना करणारे माता-पिता (देवम्) आपल्या प्रिय पुत्राला वाढवितात (पालन-पोषण करून विद्वान करतात) तसे (तुम्ही अध्यापक-उपदेशक आम्हाला प्राप्त व्हावेत) त्याप्रमाणे आम्हाला (अवर्धताम्) त्यांनी प्रगतीकडे न्यावे. (वसुधेयस्य) धनकोषातून (वसुवने) धनाची कामना करणार्‍या मुनष्यासाठी (वीताम्) आपण दोघे प्राप्त व्हा. हे विद्वान महोदय, (त्रिष्टुभा, छन्दसा) त्रिष्टुप् नामक छन्दाद्वारे (इन्द्रे) आत्म्यामधे (त्विषम्) प्रकाशयुक्त (अति कार्यक्षम) (इन्द्रियम्) कर्ण आदी इन्द्रियासाठी आणि (वयः) सुख (दधत्) धारण करीत (आम्हाला ज्ञान, उपदेशादी ऐकवीत (यज) आपण यज्ञादी उत्तम कर्म करा ॥40॥

    भावार्थ - भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. ज्याप्रमाणे अध्यापक आणि उपदेशक आपल्या विद्यार्थ्यांना आणि शिष्यांना प्रगत वा ज्ञानसंपन्न करतात, आणि आईवडील आपल्या संततीची उन्नती करतात, तसे विद्वान स्त्री-पुरूषांनी सर्वांना वेदविद्या शिकवावी. ॥40॥

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