अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 4/ मन्त्र 15
क्रो॒ड आ॑सीज्जामिशं॒सस्य॒ सोम॑स्य॒ क॒लशो॑ धृ॒तः। दे॒वाः सं॒गत्य॒ यत्सर्व॑ ऋष॒भं व्यक॑ल्पयन् ॥
स्वर सहित पद पाठक्रो॒ड: । आ॒सी॒त् । जा॒मि॒ऽशं॒सस्य॑ । सोम॑स्य । क॒लश॑: । धृ॒त: । दे॒वा: । स॒म्ऽगत्य॑ । यत् । सर्वे॑ । ऋ॒ष॒भम् । वि॒ऽअक॑ल्पयन् ॥४.१५॥
स्वर रहित मन्त्र
क्रोड आसीज्जामिशंसस्य सोमस्य कलशो धृतः। देवाः संगत्य यत्सर्व ऋषभं व्यकल्पयन् ॥
स्वर रहित पद पाठक्रोड: । आसीत् । जामिऽशंसस्य । सोमस्य । कलश: । धृत: । देवा: । सम्ऽगत्य । यत् । सर्वे । ऋषभम् । विऽअकल्पयन् ॥४.१५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 4; मन्त्र » 15
भाषार्थ -
(क्रोडः) छाती (आसीत्) थी (जाभिशंसस्य) जामिशंस की, (कलशः) दुग्धाशय (सोमस्य) सोम के लिये (धृतः) निर्धारित किया। (सर्वे देव) सब देवों ने (संगत्य) मिलकर (यत्) जब (ऋषभम्) बलीवर्द की (व्यकल्पयन्) विविध प्रकार की कल्पना की।
टिप्पणी -
['जामिशंस" का अर्थ है "बहिन की प्रशंसा करने वाला। जामि अर्थात् सहजात भगिनी, शंस= शंसु स्तुतौ, स्तुति करने वाला, प्रशंसा करने वाला भाई। जो भाई निज बहिन की सदा प्रशंसा करता और उस की रक्षा करता है उसके लिये क्रोड़ है, छाती है, वह छाती में लगाकर स्नेह करने के योग्य है। "स्वसुर्जारः" (ऋ० ६।५५।५) में “जार" का अर्थ "प्रशंसक" भी सम्भव है। यथा “जरिता स्तोतृनाम (निघं० ३।१६)। "सोमस्य कलशः" में सोम का अर्थ है दुग्ध (ऋ० ९।१०७।९) में सोम का अर्थ दुग्ध है। (निरुक्त ५।१।३)। "कलश" का अर्थ है गौ का दुग्धाशय जिसमें दुग्ध का आवास होता है। निरुक्त में जामिशंस का वर्णन नहीं हैं।