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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 71
    ऋषिः - कुमारहारित ऋषिः देवता - कृषीवला देवताः छन्दः - विराट्पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    लाङ्ग॑लं॒ पवी॑रवत् सु॒शेव॑ꣳ सोम॒पित्स॑रु। तदुद्व॑पति॒ गामविं॑ प्रफ॒र्व्यं च॒ पीव॑रीं प्र॒स्थाव॑द् रथ॒वाह॑णम्॥७१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    लाङ्ग॑लम्। पवी॑रवत्। सु॒शेव॒मिति॑ऽसु॒ऽशेव॑म्। सो॒म॒पित्स॒र्विति॑ सोम॒पिऽत्स॑रु। तत्। उत्। व॒प॒ति॒। गाम्। अवि॑म्। प्र॒फ॒र्व्य᳖मिति॑ प्रऽफ॒र्व्य᳖म्। च॒। पीव॑रीम्। प्र॒स्थाव॒दिति॑ प्र॒स्थाऽव॑त्। र॒थ॒वाह॑नम्। र॒थ॒वाह॑न॒मिति॑ रथ॒ऽवाह॑नम् ॥७१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    लाङ्गलम्पवीरवत्सुशेवँ सोमपित्सरु । तदुद्वपति गामविम्प्रपर्व्यञ्च पीवरीम्प्रस्थावद्रथवाहणम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    लाङ्गलम्। पवीरवत्। सुशेवमितिऽसुऽशेवम्। सोमपित्सर्विति सोमपिऽत्सरु। तत्। उत्। वपति। गाम्। अविम्। प्रफर्व्यमिति प्रऽफर्व्यम्। च। पीवरीम्। प्रस्थावदिति प्रस्थाऽवत्। रथवाहनम्। रथवाहनमिति रथऽवाहनम्॥७१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 71
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    पदार्थ -
    १. हल की मूठ को लाङ्गल कहते हैं। यह (लाङ्गलम्) = हल की मूठ (पवीरवत्) = उत्तम फालवाला हो। [पविः धारा, सोऽस्यास्तीति पवीरं फालः], (सुशेवम्) = शोभन-सुखकर हो । उसकी धारा खूब तेज़ हो, जिससे सरलता से भूमि को खोद सके। हमारा यह हल सरलता से चलनेवाला [facile] हो। हम अथवा बैल क्या हल चला रहे हों, हल स्वयं चल रहा हो। (सोमपित्सरु) = सोमादि ओषधियों के पालन करनेवाले का यह हल (त्सरु) = खड्गमुष्टि हो । जैसे क्षत्रिय के हाथ में तलवार की मूठ होती है और वह उसे पकड़कर शत्रुओं का संहार कर देता है उसी प्रकार कृषक के लिए यह लाङ्गल तलवार की मूठ ही है। उसके द्वारा यह सोमादि उत्तम ओषधियों के अभाव को नष्ट कर दें-राष्ट्र में अन्नाभाव को यह दूर करनेवाला हो। २. (तत्) = वह हल-हल द्वारा किया जानेवाला कृषि कार्य [क] (प्रफर्व्य च) = [प्रकर्षेण फर्वति गच्छतीति प्रफर्वी] खूब क्रियाशील - चुस्त गौ को - अथर्ववेद के शब्दों में (आस्पन्दमाना) = उछलती - कूदती गौ को (उद्वपति) = [गमयति] प्राप्त कराता है। ऋग्वेद के अक्षसूक्त में कहते हैं कि हे कितव 'तत्र गावः कितव तत्र जाया' हे जूए की ओर झुकाववाले ! तू इस बात को समझ ले कि इस कृषि कार्य में गौवें हैं, इस कृषि कार्य में उत्तम घर का निर्माण है। [ख] यह हल तुझे (पीवरीं अविम्) = पूर्ण स्वस्थ मोटी ताज़ी भेड़ प्राप्त कराएगा, जो तुझे वस्त्रों के लिए उत्तम ऊन देनेवाली होगी। [ग] यह कृषि कार्य तुझे प्रस्थावत्-प्रस्थानसंयुक्त, उत्कृष्ट वेग से युक्त, हर समय चलने के लिए तैयार - पर- तैयार, जिसे रोकने में कठिनता होती हो ऐसे (रथवाहनम्) = रथ के वाहनभूत घोड़े को प्राप्त कराता है । ३. एवं, कृषि - कार्य में गौवें हैं जो हमारे शरीर के पोषण के लिए दूध-घृत आदि प्राप्त कराती हैं। इस कार्य में भेड़े हैं जो वस्त्रों के लिए ऊन देती हैं। वेगवाले घोड़े हैं जो हमें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं। इस प्रकार यह कृषि हमें जीवन की सब आवश्यकताओं को प्राप्त कराती है और हमारे घरों को स्वस्थ व आनन्दमय बनाती है। मनुष्य का नाम ही वेद में 'कृष्टि' है- कृषि करनेवाला । वस्तुतः कृषि ही आजीविका के लिए सर्वोत्तम है। - =

    भावार्थ - भावार्थ - कृषि में गौवें हैं, भेड़े हैं व घोड़े हैं, अतः हम कृषि की ओर ध्यान दें। हमारा हल सुख से चलनेवाला व अन्नाभाव को समाप्त करनेवाला हो ।

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