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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 73
    ऋषिः - कुमारहारित ऋषिः देवता - अघ्न्या देवताः छन्दः - भुरिगार्षी गायत्री स्वरः - षड्जः
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    विमु॑च्यध्वमघ्न्या देवयाना॒ऽअग॑न्म॒ तम॑सस्पा॒रम॒स्य। ज्योति॑रापाम॥७३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि। मु॒च्य॒ध्व॒म्। अ॒घ्न्याः॒। दे॒व॒या॒ना॒ इति॑ देवऽयानाः। अग॑न्म। तम॑सः। पा॒रम्। अ॒स्य। ज्योतिः॑। आ॒पा॒म॒ ॥७३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विमुच्यध्वमघ्न्या देवयाना अगन्म तमसस्पारमस्य ज्योतिरापाम ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वि। मुच्यध्वम्। अघ्न्याः। देवयाना इति देवऽयानाः। अगन्म। तमसः। पारम्। अस्य। ज्योतिः। आपाम॥७३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 73
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    पदार्थ -
    १. कृषि के द्वारा मनुष्य सब अङ्गों की शक्तियों का ठीक विकास करके पूर्ण नीरोग बनता है। प्रभु कहते हैं कि (विमुच्यध्वम्) = तुम सब आधि-व्याधियों से मुक्त हो जाओ। २. (अघ्न्याः) = रोगों से हनन के योग्य न होओ। कोई भी रोग तुम्हारे जीवन को असमय में ही नष्ट करनेवाला न हो । ३. (देवयाना:) = तुम सदा देवताओं के मार्ग से चलनेवाले बनो। तुम्हारे मनों में आसुर भावनाओं का विकास न हो। ४. तुम निश्चय करो कि (अस्य तमसः) = इस अन्धकार के (पारम् अगन्म) = पार को प्राप्त करें- अन्धकार में ही भटकते न रहें। और ५. (ज्योतिः आपाम्) = = ज्योति को प्राप्त करनेवाले हों। ('तमसो मा ज्योतिर्गमय') = मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलिए'- यही तुम्हारी प्रार्थना हो इसी के लिए तुम्हारा प्रयत्न हो । ६. सोमादि उत्तम ओषधियों के सेवन से तुम्हारा अन्तःकरण शुद्ध होगा, स्मृति ध्रुव होगी और वासनाएँ नष्ट होकर तुम्हारा जीवन सुन्दर बनेगा।

    भावार्थ - भावार्थ - कृषि से उत्पन्न ओषधियों के सेवन से हम नीरोग बनते हुए अन्धकार से परे प्रकाश को प्राप्त होंगे।

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