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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 19
    ऋषिः - वत्सप्रीर्ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृदार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    वि॒द्मा ते॑ऽअग्ने त्रे॒धा त्र॒याणि॑ वि॒द्मा ते॒ धाम॒ विभृ॑ता पुरु॒त्रा। वि॒द्मा ते॒ नाम॑ पर॒मं गुहा॒ यद्वि॒द्मा तमुत्सं॒ यत॑ऽआज॒गन्थ॑॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒द्म। ते॒। अ॒ग्ने॒। त्रे॒धा। त्र॒याणि॑। वि॒द्म। ते॒। धाम॑। विभृ॒तेति॒ विभृ॑ऽता। पु॒रु॒त्रेति॑ पुरु॒ऽत्रा। वि॒द्म। ते॒। नाम॑। प॒र॒मम्। गुहा॑। यत्। वि॒द्म। तम्। उत्स॑म्। यतः॑। आ॒ज॒गन्थेत्या॑ऽज॒गन्थ॑ ॥१९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विद्मा तेऽअग्ने त्रेधा त्रयाणि विद्मा ते धाम विभृता पुरुत्रा । विद्मा ते नाम परमङ्गुहा यद्विद्मा तमुत्सँयतऽआजगन्थ ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विद्म। ते। अग्ने। त्रेधा। त्रयाणि। विद्म। ते। धाम। विभृतेति विभृऽता। पुरुत्रेति पुरुऽत्रा। विद्म। ते। नाम। परमम्। गुहा। यत्। विद्म। तम्। उत्सम्। यतः। आजगन्थेत्याऽजगन्थ॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 19
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    भावार्थ -
    हे ( अग्ने )अग्ने ! राजन् ! ( ते ) तेरे (त्रेधा ) तीन प्रकार के ( धाम ) धाम, तेज को हम ( विद्म ) जाने । और ( पुरुत्रा ) समस्त प्रजाओं के पालने में समर्थ (त्रयाणि ) तीनों (विभृता) विविधरूपों से धारण किये हुए ( धाम ) धारण सामर्थ्यों और बलों को भी ( विद्य) जानें। और ( ते ) तेरा ( गुहा यत् ) गुहा में, विद्वानों के हृदय में या वाणी में छिपे या विख्यात तेरे ( नाम ) नाम, नमनकारी बल को या विख्याति को ( विद्य) जानें और तू ( यतः ) जहां से, जिस स्थान से ( आजगन्ध ) आता या प्रकट होता है हम ( तम् ) उस ( उत्सम् ) बल आदि के निकास को भी ( बिन) जानें || शत० ६ । ७ । ४ । ४॥ 'त्रेधा धाम' – अग्नि, विद्युत और सूर्य। 'त्रयाणि धामानि भवन्ति स्थानानि नामानि जन्मानि । अथवा आहवनीय गार्हपत्यदक्षिणाग्न्यादीनि ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अग्निर्देवता । निचृदार्षी त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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