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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 81
    ऋषिः - भिषगृषिः देवता - वैद्यो देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    अ॒श्वा॒व॒ती सो॑माव॒तीमू॒र्जय॑न्ती॒मुदो॑जसम्। आवि॑त्सि॒ सर्वा॒ऽओष॑धीर॒स्माऽअ॑रि॒ष्टता॑तये॥८१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒श्वा॒व॒तीम्। अ॒श्वा॒व॒तीमित्य॑श्वऽव॒तीम्। सो॒मा॒व॒तीम्। सो॒म॒व॒तीमिति॑ सो॑मऽव॒तीम्। ऊ॒र्जय॑न्तीम्। उदो॑जस॒मित्युत्ऽओ॑जसम्। आ। अ॒वि॒त्सि॒। सर्वाः॑। ओष॑धीः। अ॒स्मै। अ॒रि॒ष्टता॑तय॒ इत्य॑रि॒ष्टऽता॑तये ॥८१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्वावतीँ सोमावतीमूर्जयन्तीमुदोजसम् । आवित्सि सर्वा ओषधीरस्मा अरिष्टतातये ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अश्वावतीम्। अश्वावतीमित्यश्वऽवतीम्। सोमावतीम्। सोमवतीमिति सोमऽवतीम्। ऊर्जयन्तीम्। उदोजसमित्युत्ऽओजसम्। आ। अवित्सि। सर्वाः। ओषधीः। अस्मै। अरिष्टतातय इत्यरिष्टऽतातये॥८१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 81
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    भावार्थ -
    मैं ( अश्वावतीम् ) अति शीघ्र शरीर में व्यापने वाले गुणों से युक्त और ( सोमावतीम् ) वीर्यवती और ( ऊर्जयन्तीम् ) बल पराक्रम- शालिनी, ( उद् ओजसम् ) उत्कृष्ट ओजधातु की वृद्धि करनेवाली और उत्तम पराक्रम करनेहारी ( ओषधीः ) सन्ताप, बल को धारण करनेवाली ओषधियों को ( अरिष्टतातये ) हिंसक रोगों के नाश करने के लिये ( आवित्सि ) सब प्रकार से सब स्थानों से प्राप्त करूं। इसी प्रकार समस्त ( ओषधीः ) वीर्यवती प्रजाओं और सेनाओं को ( अरिष्टतातये ) अपने राष्ट्र के नाश होने से बचाने के लिये प्राप्त करूं ( अष्मावतीम् ) क्षत्रियों से पूर्ण अथवा अश्मा=वज्र या शास्त्रों से युक्त ( सोमावतीम् ) सेना नायक से युक्त और ( उदोजसम् ) उत्कृष्ट पराक्रम युक्त ( ऊर्जयन्ती ) बलशालिनी सेना को मैं प्राप्त करूं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - आथर्वणो भिषग् ऋषिः। वैद्यः, ओषधयो वा देवता । अनुष्टुप् । गांधारः ॥

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