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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 76
    ऋषिः - भिषगृषिः देवता - वैद्यो देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    श॒तं वो॑ऽअम्ब॒ धामा॑नि स॒हस्र॑मु॒त वो॒ रुहः॑। अधा॑ शतक्रत्वो यू॒यमि॒मं मे॑ऽअग॒दं कृ॑त॥७६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒तम्। वः॒। अ॒म्ब॒। धामा॑नि। स॒हस्र॑म्। उ॒त। वः॒। रुहः॑। अध॑। श॒त॒क्र॒त्व॒ इति॑ शतऽक्रत्वः। यू॒यम्। इ॒मम्। मे॒। अ॒ग॒द॒म्। कृ॒त॒ ॥७६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शतँ वोऽअम्ब धामानि सहस्रमुत वो रुहः । अधा शतक्रत्वो यूयमिमन्मे अगदङ्कृत॥


    स्वर रहित पद पाठ

    शतम्। वः। अम्ब। धामानि। सहस्रम्। उत। वः। रुहः। अध। शतक्रत्व इति शतऽक्रत्वः। यूयम्। इमम्। मे। अगदम्। कृत॥७६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 76
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    भावार्थ -
    हे ( अम्बे ) माता के समान पुष्टिकारक ओषधियो ! ( वः ) तुम्हारे ( शतं धामानि ) सैकड़ों वीर्य हैं । ( उत ) और ( वः ) तुम्हारे ( रुहः ) प्ररोह, अंकुर, पुत्र संतति आदि भी ( सहस्रम् ) सहस्रों प्रकार के हैं । ( अध ) और ( यूयम् ) तुम सब भी ( शतक्रत्व: ) सैकड़ों प्रकार के कार्य करनेवाली हो । अथवा हे शतक्रत्वः ) सैकड़ों प्रजाओं से युक्त विद्वान्, पुरुषो ! ( यूयम् ) आप लोग ( मे ) मेरे शरीर को ( अगदं कृत ) नीरोग करो ॥ शत० ७ । २ । ४ । २७ ॥ ओष अर्थात् वीर्य को धारण करनेवाली है सेनाओ ! ( वः शतं- धामानि ) तुम्हारे सैकड़ों वीर्य हैं और ( वः सहस्रं रुहः ) तुम्हारे सहस्रों उन्नत्ति स्थान और उत्पत्तिस्थान है । ( यूयं शतक्रत्वः ) तुम सब सैकड़ों वीर्यों से युक्त हो, ( मे इमं अगंदकृत ) मेरे इस राष्ट्र को क्लेश रहित करो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - पूर्वोक्ते ऋषिदेवते । अनुष्टुप् । गांधार: ॥

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