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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 92
    ऋषिः - वरुण ऋषिः देवता - वैद्या देवताः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    याऽओष॑धीः॒ सोम॑राज्ञीर्ब॒ह्वीः श॒तवि॑चक्षणाः। तासा॑मसि॒ त्वमु॑त्त॒मारं॒ कामा॑य॒ शꣳ हृ॒दे॥९२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या। ओष॑धीः। सोम॑राज्ञी॒रिति॒ सोम॑ऽराज्ञीः। ब॒ह्वीः। श॒तवि॑चक्षणा॒ इति॑ श॒तऽवि॑ऽचक्षणाः। तासा॑म्। अ॒सि॒। त्वम्। उ॒त्त॒मेत्यु॑त्ऽत॒मा। अर॑म्। कामा॑य। शम्। हृदे ॥९२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या ओषधीः सोमराज्ञीर्बह्वीः शतविचक्षणाः । तासामसि त्वमुत्तमारङ्कामाय शँ हृदे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    या। ओषधीः। सोमराज्ञीरिति सोमऽराज्ञीः। बह्वीः। शतविचक्षणा इति शतऽविऽचक्षणाः। तासाम्। असि। त्वम्। उत्तमेत्युत्ऽतमा। अरम्। कामाय। शम्। हृदे॥९२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 92
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    भावार्थ -
    ( याः ) जो ( ओषधीः ) ओषधियें ( सोमराज्ञी: ) सोम- वल्ली के गुणों से प्रकाशित होती हैं और ( शतविचक्षणाः) सैकड़ों रोगों के दूर करने में नाना प्रकार से उपदेश की जाती हैं ( तासाम् ) उनमें से ( त्वम् ) हे विशेष औषधे ! तू सब से अधिक ( उत्तमा असि ) उत्तम है। तू ( कामाय ) यथेष्ट सुख के प्राप्त करने के लिये और ( हृदे शम् ) हृदय को शान्ति देने के लिये ( अरम् ) पर्याप्त है । वीर प्रजाओं के पक्ष में - ( सोमराज्ञीः ) सोम राजा को अपना राजा मानने वाली ( याः बह्वीः ओषधीः ) बहुत सी वीर्यवती, बलवती प्रज्ञाएं ( शतविचक्षणाः ) सैकड़ों कार्यों में कुशल हैं ( तासाम् ) उनमें से ( त्वम् कामाय शं हृदे ) कामना और हृदय को शान्ति के लिये तू ही सबसे ( उत्तमा असि ) श्रेष्ठ है । स्त्री के पक्ष में -- ( सोमराज्ञी: ) वधू की कामना करनेवाले की रानी बननेवाली ( बह्वीः ) बहुत सी ( शतविचक्षणाः ) सैकड़ों गुणों में विलक्षण, चतुर ( ओषधि: ) ओषधियों के समान वीर्यवती, वीर्य धारण में समर्थ स्त्रिये हैं । ( तासाम् ) उनमें से ( त्वम् ) तू ( कामाय शम् ) कामना भोग की शान्ति और ( हृदे शम् ) हृदय की शान्ति के लिये भी ( उत्तमा असि ) तू ही उत्तम है ।

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