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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 89
    ऋषिः - भिषगृषिः देवता - वैद्या देवताः छन्दः - विराडनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    याः फ॒लिनी॒र्याऽअ॑फ॒लाऽअ॑पु॒ष्पा याश्च॑ पु॒ष्पिणीः॑। बृह॒स्पति॑प्रसूता॒स्ता नो॑ मुञ्च॒न्त्वꣳह॑सः॥८९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    याः। फ॒लिनीः॑। याः। अ॒फ॒लाः अ॒पु॒ष्पाः। याः। च॒। पु॒ष्पिणीः॑। बृह॒स्पति॑प्रसूता॒ इति॒ बृह॒स्पति॑ऽप्रसूताः। ताः। नः॒। मु॒ञ्च॒न्तु। अꣳह॑सः ॥८९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    याः पलिनीर्याऽअपलाऽअपुष्पा याश्च पुष्पिणीः । बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्वँहसः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    याः। फलिनीः। याः। अफलाः अपुष्पाः। याः। च। पुष्पिणीः। बृहस्पतिप्रसूता इति बृहस्पतिऽप्रसूताः। ताः। नः। मुञ्चन्तु। अꣳहसः॥८९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 89
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    भावार्थ -
    ( याः ) जो ओषधियां ( फलिनी: ) फलवाली हैं और ( या: अफला: ) जो फल रहित हैं, ( या अपुष्पाः ) जो फूलबाली नहीं हैं ( याः च पुष्पिणीः ) जो फूलवाली हैं ( ताः ) वे सब (बृहस्पति - प्रसूताः ) बृहती विद्या के पालक उत्तम विद्वान द्वारा प्रयोग की जाकर (नः) हमें ( अंहसः ) दुःखों से ( मुञ्चन्तु ) छुड़ावें। इसी प्रकार जो वीर प्रजाएं ( फलिनी: ) शस्त्र के फलों से युक्त, या ( अफला : ) शस्त्रों के फलों से रहित, (अपुष्पाः) पुष्टिकर पदार्थों से रहित, ( पुष्पिणीः ) पुष्टिकर पदार्थों से युक्त हैं वे सब भी बड़े राष्ट्रपति से प्रेरित होकर हमें ( अंहसः ) पाप कर्मों या कष्टों से बचावें ।

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