यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 18
ऋषिः - भुवनपुत्रो विश्वकर्मा ऋषिः
देवता - विश्वकर्मा देवता
छन्दः - भुरिगार्षी पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
6
किस्वि॑दासीदधि॒ष्ठान॑मा॒रम्भ॑णं कत॒मत् स्वि॑त् क॒थासी॑त्। यतो॒ भूमिं॑ ज॒नय॑न् वि॒श्वक॑र्मा॒ वि द्यामौर्णोन्महि॒ना वि॒श्वच॑क्षाः॥१८॥
स्वर सहित पद पाठकिम्। स्वि॒त्। आ॒सी॒त्। अ॒धि॒ष्ठान॑म्। अ॒धि॒स्थान॒मित्य॑धि॒ऽस्थान॑म्। आ॒रम्भ॑ण॒मित्या॒ऽरम्भ॑णम्। क॒त॒मत्। स्वि॒त्। क॒था। आ॒सी॒त्। यतः॑। भूमि॑म्। ज॒नय॑न्। वि॒श्वक॒र्मेति॑ वि॒श्वऽक॑र्मा। वि। द्याम्। और्णो॑त्। म॒हि॒ना। वि॒श्वच॑क्षा॒ इति॑ वि॒श्वऽच॑क्षाः ॥१८ ॥
स्वर रहित मन्त्र
किँ स्विदासीदधिष्ठानमारम्भणङ्कतमत्स्वित्कथासीत् । यतो भूमिञ्जनयन्विश्वकर्मा वि द्याऔर्णान्महिना विश्वचक्षाः ॥
स्वर रहित पद पाठ
किम्। स्वित्। आसीत्। अधिष्ठानम्। अधिस्थानमित्यधिऽस्थानम्। आरम्भणमित्याऽरम्भणम्। कतमत्। स्वित्। कथा। आसीत्। यतः। भूमिम्। जनयन्। विश्वकर्मेति विश्वऽकर्मा। वि। द्याम्। और्णोत्। महिना। विश्वचक्षा इति विश्वऽचक्षाः॥१८॥
विषय - राष्ट्र या साम्राज्य की उत्पत्ति विषयक विवेचना । पक्षान्तर में सृष्टि-उत्पत्ति विषयक मीमांसा ।
भावार्थ -
राजा के पक्ष में -- जब राजा प्रथम महान् राज्य की स्थापना करना प्रारम्भ करता है उसके विषय में प्रश्न करते हैं - [ प्र० १ उस समय उसका ( अधिष्ठानम् ) आश्रयस्थान ( किं स्वित्) भला क्या ( आसीत् ) होता है । और ( प्र० २ ) ( कतमस्वित् ) कौनसा पदार्थ ( आरम्भणम् ) महान् साम्राज्य को आरम्भ करने के लिये मूल रूप से है । और (कथा आसीत् ) वह किस प्रकार होता है | ( यतः ) जिससे ( विश्वकर्मा ) राज्य के समस्त कर्मों को सम्पादन करने में कुशल राजा ( भूमिं जनयन् ) अपने आश्रय भूमि को पैदा करके, अपनी बनाकर,( महिना ) अपने महान् पराक्रम से ( विश्वचक्षाः ) समस्त राष्ट्र का स्वयंद्रष्टा होकर ( द्याम् ) सूर्य के समान तेजस्वी पद को ( वि और्णोत् ) विशेष रूप से या विविध प्रकार से आच्छादित करता या प्राप्त करता है ।
परमेश्वर के पक्ष में - सृष्टि के उत्पन्न करने के पूर्व [ १ ] ( किं स्वित् ) कौनसा ( अधिष्ठानम् ) आश्रय ( आसीत् ) था । और [ २ ] जगत् को ( आरम्भणम्) बनाने के लिये प्रारम्भक मूल द्रव्य ( कतमत् स्वित् ) दृश्यमाण आकाशादि तत्वों में कौनसा था ? और [ ३ ] वह ( कथा आसीत् ) किस दशा में था ? ( यतः ) जिससे वह ( विश्वकर्मा ) समस्त संसार का कर्त्ता ( भूमिम् ) सबको उत्पन्न करने वाली भूमि या प्रकृति को ( जनयन् ) अव्यक्त से व्यक्त रूप में प्रकट करता हुआ ( महिना ) अपने महान् सामर्थ्य से ( विश्वचक्षाः ) विश्व भर को साक्षात् करने हारा हाकेर ( द्याम् ) समस्त आकाश को (वि और्णोत् ) विविध प्रकार के लोकों, ब्रह्माण्डों से आच्छादित कर देता है ।
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