Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 38
    ऋषिः - अप्रतिरथ ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - भुरिगार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    4

    गो॒त्र॒भिदं॑ गो॒विदं॒ वज्र॑बाहुं॒ जय॑न्त॒मज्म॑ प्रमृ॒णन्त॒मोज॑सा। इ॒मꣳ स॑जाता॒ऽअनु॑ वीरयध्व॒मिन्द्र॑ꣳ सखायो॒ऽअनु॒ सꣳर॑भध्वम्॥३८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गो॒त्र॒भिद॒मिति॑ गोत्र॒ऽभिद॑म्। गो॒विद॒मिति॑ गो॒ऽविद॑म्। वज्र॑बाहु॒मिति॒ वज्र॑ऽबाहुम्। जय॑न्तम्। अज्म॑। प्र॒मृ॒णन्त॒मिति॑ प्रऽमृ॒णन्त॑म्। ओज॑सा। इ॒मम्। स॒जा॒ता॒ इति॑ सऽजाताः। अनु॑। वी॒र॒य॒ध्व॒म्। इन्द्र॑म्। स॒खा॒यः॒। अनु॑। सम्। र॒भ॒ध्व॒म् ॥३८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गोत्रभिदङ्गोविदँवज्रबाहुञ्जयन्तमज्म प्रमृणन्तमोजसा । इमँ सजाताऽअनु वीरयध्वमिन्द्रँ सखायो अनु सँ रभध्वम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    गोत्रभिदमिति गोत्रऽभिदम्। गोविदमिति गोऽविदम्। वज्रबाहुमिति वज्रऽबाहुम्। जयन्तम्। अज्म। प्रमृणन्तमिति प्रऽमृणन्तम्। ओजसा। इमम्। सजाता इति सऽजाताः। अनु। वीरयध्वम्। इन्द्रम्। सखायः। अनु। सम्। रभध्वम्॥३८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 38
    Acknowledgment

    भावार्थ -
    हे ( सजाता: । बल, कीर्त्ति, वंश आदि से समान रूप से विख्यात वीर पुरुषो ! आप लोग ( गोत्रभिदम् ) शत्रुओं के गोत्रों को तोड़ने वाले शत्रु-वंशों के नाशक, ( गोविदम् ) पृथ्वी के प्राप्त करने वाले ( बज्रबाहुम् ) बाहु में वीर्यवान् ( अज्म जयन्तम् ) संग्राम का विजय करने वाले और ( ओजसा ) बल पराक्रम से शत्रुओं को खूब ( प्रमृणन्तम् ) विनाश करने वाले ( इमम् इन्द्रम् ) इस इन्द्र, सेनापति को ( अनु वीरयध्वम् ) अनुसरण करके उसके अधीन रहकर ( वीरयध्वम् ) वीरता के कार्य करो, विक्रम पूर्वक युद्ध करो। हे ( सखायः ) मित्र लोगो ! आप लोग उसके ही ( अनु ) अनुकूल रहकर ( सम् रभध्वम् ) अच्छी नकार युद्ध आरम्भ करो ।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top