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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 19
    ऋषिः - भुवनपुत्रो विश्वकर्मा ऋषिः देवता - विश्वकर्मा देवता छन्दः - भुरिगार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    वि॒श्वत॑श्चक्षुरु॒त वि॒श्वतो॑मुखो वि॒श्वतो॑बाहुरु॒त वि॒श्वत॑स्पात्। सं बा॒हुभ्यां॒ धम॑ति॒ सं पत॑त्रै॒र्द्यावा॒भूमी॑ ज॒नय॑न् दे॒वऽएकः॑॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒श्वत॑श्चक्षु॒रिति॑ वि॒श्वतः॑ऽचक्षुः। उ॒त। वि॒श्वतो॑मुख॒ इति॑ वि॒श्वतः॑ऽमुखः। वि॒श्वतो॑बाहु॒रिति॑ वि॒श्वतः॑ऽबाहुः। उ॒त। वि॒श्वत॑स्पात्। वि॒श्वतः॑ऽपा॒दिति॑ वि॒श्वतः॑ऽपात्। सम्। बा॒हुभ्या॒मिति॑ बा॒हुऽभ्या॑म्। धम॑ति। सम्। पत॑त्रैः। द्यावा॒भूमी॒ इति॒ द्यावा॒भूमी॑। ज॒नय॑न्। दे॒वः। एकः॑ ॥१९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात् । सम्बाहुभ्यान्धमति सम्पतत्रैर्द्यावाभूमी जनयन्देवऽएकः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वतश्चक्षुरिति विश्वतःऽचक्षुः। उत। विश्वतोमुख इति विश्वतःऽमुखः। विश्वतोबाहुरिति विश्वतःऽबाहुः। उत। विश्वतस्पात्। विश्वतःऽपादिति विश्वतःऽपात्। सम्। बाहुभ्यामिति बाहुऽभ्याम्। धमति। सम्। पतत्रैः। द्यावाभूमी इति द्यावाभूमी। जनयन्। देवः। एकः॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 19
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    भावार्थ -
    राजा के पक्ष में - वह राजा विजिगीषु स्वयं ( विश्वतः चक्षु: ) चरों और मन्त्रियों द्वारा सब ओर अपनी आंख रखता है। वह ( विश्वतो मुखः ) सब ओर अपना मुख रखता है । ( विश्वतो बाहुः ) वह सब ओर अपने शत्रुओं को पीड़न करने वाली बाहुएं रखता है। और ( विश्वतः पात् ) सब ओर शत्रु पर आक्रमण करने के कदम बढ़ाता रहता है | वह ( बाहुभ्याम् ) बाहु के समान सेना के दोनों पक्षों से संग्रामभूमि में ( संघमति ) आगे बढ़ता है और ( पतत्रैः ) अपने सेना दल रूप पक्षों या आगे बढ़ने वाले दस्तों सहित ( संघमति । शत्रु पर जा चढ़ता है। ( द्यावाभूमी ) योग्य भूमि और भूमिस्थ प्रजाओं और द्यो = सूर्य के समान भोक्ता राजा दोनों को ( जनयन् ) स्वयं पैदा करता हुआ ( एकः देवः ) एकमात्र विजयी होकर विराजता है । ईश्वर के पक्ष में - वह परमेश्वर ( विश्वतः चक्षुः ) सर्वत्र आँख वाला, सर्वत्र द्रष्टा, ( विश्वतः मुखः ) सर्वत्र ज्ञानोपदेशक मुख वाला, ( विश्वतो बाहुः ) सर्वत्र वीर्यरूप बाहुमान् और ( विश्वतः पात् ) सर्वत्र चरण वाला है । अर्थात् वह सब प्रकार की शक्तियों से सर्वत्र व्याप्त है। वह ( बहुभ्याम् ) अनन्त बल वीर्यों द्वारा ( एकः देवः ) अकेला देव ( द्यावाभूमी जनयन् ) आकाशस्थ और भूमि और भूमिस्थ पदार्थों को रचता हुआ ( पतत्रैः व्यापनशील या प्रगतिशील प्रकृति के परमाणुओं से ( सं धमति ) संसार को सुव्यवस्थित करता और रचता है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - त्रिष्टुभः । धैवतः ॥

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