Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 40
    ऋषिः - अप्रतिरथ ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - विराडार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    3

    इन्द्र॑ऽआसां ने॒ता बृह॒स्पति॒र्दक्षि॑णा य॒ज्ञः पु॒रऽए॑तु॒ सोमः॑। दे॒व॒से॒नाना॑मभिभञ्जती॒नां जय॑न्तीनां म॒रुतो॑ य॒न्त्वग्र॑म्॥४०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रः॑। आ॒सा॒म्। ने॒ता। बृह॒स्पतिः॑। दक्षि॑णा। य॒ज्ञः। पु॒रः। ए॒तु॒। सोमः॑। दे॒व॒से॒नाना॒मिति॑ देवऽसे॒नाना॑म्। अ॒भि॒भ॒ञ्ज॒ती॒नामित्य॑भिऽभञ्जती॒नाम्। जय॑न्तीनाम्। म॒रुतः॑। य॒न्तु॒। अग्र॑म् ॥४० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रऽआसान्नेता बृहस्पतिर्दक्षिणा यज्ञः पुर एतु सोमः । देवसेनानामभिभञ्जतीनाञ्जयन्तीनाम्मरुतो यन्त्वग्रम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रः। आसाम्। नेता। बृहस्पतिः। दक्षिणा। यज्ञः। पुरः। एतु। सोमः। देवसेनानामिति देवऽसेनानाम्। अभिभञ्जतीनामित्यभिऽभञ्जतीनाम्। जयन्तीनाम्। मरुतः। यन्तु। अग्रम्॥४०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 40
    Acknowledgment

    भावार्थ -
    ( इन्द्रः ) इन्द्र, परम ऐश्वर्ययुक्त सेनापति जो शत्रु के व्यूहों को तोड़ने में समर्थ हो वह ( आसाम् ) इन सेनाओं का ( नेता ) नायक होकर पीछे से सेना को मार्ग पर चलावे | ( बृहस्पतिः ) बड़े २ अधिकारों का अध्यक्ष या बड़े २ दलों का स्वामी 'बृहस्पतिः' ( दक्षिणा ) अपनी सेना के दायें भाग में होकर चले । ( यज्ञः ) व्यूहादि में दलों को संगत या व्यवस्थित करने में कुशल पुरुष ( पुरः एतु ) आगे २ चले ( सोमः ) सेना का प्रेरक या उत्साहवर्धक पुरुष बायें और होकर चले । और ( जयन्तीनाम् ) विजय करनेवाली ( अभिभञ्जतीनाम् ) शत्रुओं के बलों, दलों और गढ़ों को तोड़ती फोड़ती हुई ( देवसेनानाम् ) विजयी पुरुषों की सेनाओं के ( अग्रम् ) अग्र भाग में ( मरुतः ) शत्रुओं को मारने में समर्थ एवं वायु के समान बलवान् शूरवीर पुरुष ( यन्तु ) चलें । उव्वट के मत में - इन्द्र सेनानायक हो और बृहस्पति उसका मन्त्री उसके साथ हो। यज्ञ दक्षिण में और सोम आगे हो । अथवा यज्ञ और सोम दोनों सेना के दायीं ओर आगे के भाग में हों ।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top