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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 21
    ऋषिः - हैमवर्चिर्ऋषिः देवता - सोमो देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    धा॒नाः क॑र॒म्भः सक्त॑वः परीवा॒पः पयो॒ दधि॑। सोम॑स्य रू॒पꣳ ह॒विष॑ऽआ॒मिक्षा॒ वजि॑नं॒ मधु॑॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    धा॒नाः। क॒र॒म्भः। सक्त॑वः। प॒री॒वा॒प इति॑ परि॑ऽवा॒पः। पयः॑। दधि॑। सोम॑स्य। रू॒पम्। ह॒विषः॑। आ॒मिक्षा॑। वाजि॑नम्। मधु॑ ॥२१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    धानाः करम्भः सक्तवः परीवापः पयो दधि । सोमस्य रूपँ हविष आमिक्षा वाजिनम्मधु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    धानाः। करम्भः। सक्तवः। परीवाप इति परिऽवापः। पयः। दधि। सोमस्य। रूपम्। हविषः। आमिक्षा। वाजिनम्। मधु॥२१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 21
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    पदार्थ -
    १. गतमन्त्रों का विषय 'उत्तम सन्तान की प्राप्ति कैसे हो सकती है', यह था । अपनी उत्तम वृत्ति से ही हम सन्तानों को उत्तम बना पाएँगे। उस उत्तम वृत्ति के निर्माण के लिए भोजन का उत्तम होना अत्यन्त आवश्यक है। इन भोजनों में 'वानस्पतिक भोजन' उत्तम है। वास्तव में मांस तो भोजन कहे जाने योग्य ही नहीं। इन वनस्पतियों व ओषधियों का राजा 'सोम' है। 'कौषीतकी उपनिषद् २३।७' के अनुसार 'एतद्वै परममन्नाद्यं सोमः' सोम परम अन्नाद्य - सर्वोत्कृष्ट भोजन है। 'हविर्वै देवतानां सोमः ' - श० १।३।५३।२ देवताओं का सोम ही दानपूर्वक अदन करने योग्य पदार्थ है। २. इसी (हविषः सोमस्य)' दानपूर्वक अदन के योग्य सोम के (रूपम्) = [Kind, sort, species] स्थानापन्न तज्जातीय पदार्थ निम्न हैं- [क] (धाना:) = भुने हुए जौ, [ख] (करम्भः) = दधिमिश्रित सत्तु, [ग] (सक्तवः) = सत्तू [घ] परीवापः = भुने हुए चावल या घनीभूत दूध [ङ] (पय:) = दूध [च] (दधि) = दही, [छ] (आमिक्षा) = उष्ण दूध में दही डालने पर जो दूध का घनभाग होता है, वह आमिक्षा है, [ज] (वाजिनम्) = घनभाग के अतिरिक्त जो पानी-सा है यह 'वाजिनं' कहलाता है, [झ] (मधु) = शहद। ३. ये नौ पदार्थ सोम की जाति के हैं। सोम के साथ मिलकर इनकी संख्या दस हो जाती हैं। इन दस हविष्य अन्नों के प्रयोग से हम अपने अन्तःकरणों को उत्तम बनाकर उत्तम आचरणवाले होते हैं और वैसी ही सन्तानों को प्राप्त करते हैं।

    भावार्थ - भावार्थ- हम हविष्य पदार्थों का ही सेवन करें, जिससे शुद्धान्तकरणोंवाले हो सकें।

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