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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 7
    ऋषिः - आभूतिर्ऋषिः देवता - सोमो देवता छन्दः - भुरिक् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    नाना॒ हि वां॑ दे॒वहि॑त॒ꣳ सद॑स्कृ॒तं मा सꣳसृ॑क्षाथां पर॒मे व्यो॑मन्। सुरा॒ त्वमसि॑ शु॒ष्मिणी॒ सोम॑ऽए॒ष मा मा॑ हिꣳसीः॒ स्वां योनि॑मावि॒शन्ती॑॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नाना॑। हि। वा॒म्। दे॒वहि॑त॒मिति॑ दे॒वऽहि॑तम्। सदः॑। कृ॒तम्। मा। सम्। सृ॒क्षा॒था॒म्। प॒र॒मे॒। व्यो॑म॒न्निति॒ विऽओ॑मन्। सुरा॑। त्वम्। असि॑। शु॒ष्मिणी॑। सोमः॑। ए॒षः। मा। मा॒। हि॒ꣳसीः॒। स्वाम्। योनि॑म्। आ॒वि॒शन्तीत्या॑ऽवि॒शन्ती॑ ॥७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नाना हि वान्देवहितँ सदस्कृतम्मा सँसृक्षाथाम्परमे व्योमन् । सुरा त्वमसि शुष्मिणी सोमऽएष मा मा हिँसीः स्वाँयोनिमाविशन्ती ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नाना। हि। वाम्। देवहितमिति देवऽहितम्। सदः। कृतम्। मा। सम्। सृक्षाथाम्। परमे। व्योमन्निति विऽओमन्। सुरा। त्वम्। असि। शुष्मिणी। सोमः। एषः। मा। मा। हिꣳसीः। स्वाम्। योनिम्। आविशन्तीत्याऽविशन्ती॥७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 7
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    पदार्थ -
    १. उत्तम जीवन बिताने का उपदेश देते हुए प्रभु कहते हैं कि (हि) = निश्चय से (वाम्) = तुम दोनों का (देवहितम्) = [देवविहितम्] मुझ प्रभु से विहित, अर्थात् निर्दिष्ट (नाना) = अलग-अलग (सदः) = स्थान (कृतम्) = किया गया है। पति ने घर के बाहर श्रम के द्वारा परिवार के पालन के लिए धन कमाना है और पत्नी ने घर में स्थित होकर [पत्नीशालं गार्हपत्यः १९।१८] गृह-सम्बन्धी सब कार्यों को सुचारु रूपेण करना है। अर्जित धन का संग्रह व उचित व्यय पत्नी का कार्य है। २. इस प्रकार अपने-अपने कार्यों को करते हुए परमे (व्योमन्) = उत्कृष्ट हृदयाकाश में (मा सं सृक्षाथाम्) = मेरे साथ सम्यक् सम्पर्क स्थापित करने का प्रयत्न करो। इस प्रभु-सम्पर्क से ही वह शक्ति प्राप्त होनी है, जिससे वे अपने सब कार्यों को सफलता के साथ करनेवाले होंगे। ३. हे पत्नी! (त्वम्) = तू (सुरा) = [सुर to govern, to rule] इस घर का शासन करनेवाली साम्राज्ञी असि है। [सुर to shine ] तूने अपनी उत्तम व्यवस्था से इस घर को दीप्त करना है। (शुष्मिणी) = तू शत्रुओं के शोषक बलवाली है। ४. (एष:) = यह तेरा पति भी (सोमः) = शक्ति का पुञ्ज व अत्यन्त विनीत है । ५. तू (स्वां योनिम्) = अपने घर में जिस हिंसित घर का तूने निर्माण करना है आविशन्ती प्रविष्ट होती हुई (मा) = मुझे मा( हिंसी:) = मत करना, अर्थात् प्रभु-उपासन को कभी समाप्त न कर देना। यह उपासना ही तुझे वह शक्ति देगी, जिससे तू घर का उत्तमता से सञ्चालन कर पाएगी।

    भावार्थ - भावार्थ- पति-पत्नी अपने-अपने कार्यक्षेत्र का ग्रहण करके प्रभु स्मरणपूर्वक अपने कार्यों को करेंगे तो घर सचमुच 'आभूति' का घर बनेगा, जो सब दृष्टिकोणों से फूला-फला है [आ-भूति] । वहाँ स्वास्थ्य होगा, सुसन्तान होगी, सम्पत्ति होगी और इन सबसे बढ़कर वहाँ 'सत्य' होगा।

    - सूचना - यहाँ पत्नी के लिए तीन बातें कही हैं, पति के लिए एक एवं पत्नी का उत्तरदायित्व कम-से-कम तिगुना तो है ही ।

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