Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 26
    ऋषिः - विश्वामित्र ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - भुरिक् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    0

    इन्द्रो॑ वृ॒त्रम॑वृणो॒च्छर्द्ध॑नीतिः॒ प्र मा॒यिना॑ममिना॒द्वर्प॑णीतिः।अह॒न् व्यꣳसमु॒शध॒ग्वने॑ष्वा॒विर्धेना॑ऽअकृणोद्रा॒म्याणा॑म्॥२६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रः॑। वृ॒त्रम्। अ॒वृ॒णो॒त्। शर्द्ध॑नीति॒रिति॒ शर्द्ध॑ऽनीतिः। प्र। मा॒यिना॑म्। अ॒मि॒ना॒त्। वर्प॑णीतिः। वर्प॑नीति॒रिति॒ वर्प॑ऽनीतिः ॥ अह॑न्। व्य॑ꣳस॒मिति॒ विऽअ॑ꣳसम्। उ॒शध॑क्। वने॑षु। आ॒विः। धेनाः॑ अ॒कृ॒णो॒त्। रा॒म्याणा॑म् ॥२६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रो वृत्रमवृणोच्छर्धनीतिः प्र मायिनाममिनाद्वर्पणीतिः । अहन्व्यँसमुशधग्वनेष्वाविर्धेनाऽअकृणोद्राम्याणाम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रः। वृत्रम्। अवृणोत्। शर्द्धनीतिरिति शर्द्धऽनीतिः। प्र। मायिनाम्। अमिनात्। वर्पणीतिः। वर्पनीतिरिति वर्पऽनीतिः॥ अहन्। व्यꣳसमिति विऽअꣳसम्। उशधक्। वनेषु। आविः। धेनाः अकृणोत्। राम्याणाम्॥२६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 26
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    १. राजनीति में उन्नति के विघातक तत्त्वों को 'वृत्र' कहते हैं। जैसे सूर्य के प्रकाश को रोकने से (बादल) = 'वृत्र' है, जिस प्रकार ज्ञान पर पर्दा डालने से (वासना) = 'वृत्र' है, उसी प्रकार राष्ट्र की उन्नति में रुकावट डालनेवाले तत्त्व 'वृत्र' कहलाते हैं। जातीय विद्वेष फैलाकर उन्नति को रोकनेवाले साम्प्रदायिक Communalists 'वृत्र' हैं। (शर्धनीति:) = शक्तिशाली नीतिवाला (इन्द्रः) = राजा (वृत्रम्) = इस उन्नति विघातक तत्त्व को (अवृणोत्) = रोकता है। वस्तुत: साम्प्रदायिकता बढ़ने से राष्ट्र का अस्तित्व ख़तरे में पड़ जाता है, अतः राष्ट्रीयता की रक्षा के लिए राजा को शक्तिशाली नीतिवाला बनना चाहिए। ढिल-मिल नीतिवाला शासन नहीं कर सकता। राजा के मौलिक गुण 'शौर्यं तेजः' हैं। २. (वर्पणीतिः) = [वर्प = praise] प्रशंसनीय नीतिवाला राजा (मायिनाम्) = जादूगरों के तमाशे आदि कार्यों को (प्र अमिनात्) = बहुत कम कर देता है, क्योंकि ये तमाशे लोगों की उत्पादक शक्ति को या उत्पादक घण्टों को कम कर देते हैं और लोगों की जेबों पर बोझ बनते हैं । ३. (व्यंसम्) = धोखेबाजों को राजा (अहन्) = वध दण्ड देता है, चूँकि समाज के ये सबसे बड़े अभिशाप होते हैं । ४. (उशधक्) = [उश+ धक्= वश्-दह] दूसरों की सम्पत्ति की कामना करनेवालों को यह जला देता है। चोर - डाकूओं को तो राजा ने समाप्त करना ही है। इनके कारण औरों का धन ही नहीं जीवन भी असुरक्षित हो जाता है। ५. उन्नति के विघातक तत्त्वों को समाप्त कर राष्ट्र में (वनेषु) = ज्ञान की किरणों के निमित्त राम्याणाम् ज्ञान के प्रचार से लोगों को आनन्दित करनेवालों की (धेना:) = वाणियों को (आविः अकृणोत्) = प्रकट करता है, अर्थात् प्रेमपूर्वक प्रचार करनेवाले लोगों के द्वारा राष्ट्र में ज्ञान प्रसार करता है । ६. यह राजा प्रजामात्र का मित्र होता है, अतः 'विश्वामित्र' कहलाता है।

    भावार्थ - भावार्थ - राजा के पाँच कर्तव्य हैं। इन कर्तव्यों का पालन करनेवाला राजा ही राजा कहलाने के योग्य होता है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top