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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 76
    ऋषिः - वसिष्ठ ऋषिः देवता - इन्द्राग्नी देवते छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
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    उ॒क्थेभि॑र्वृत्र॒हन्त॑मा॒ या म॑न्दा॒ना चि॒दा गि॒रा।आ॒ङ्गू॒षैरा॒विवा॑सतः॥७६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒क्थेभिः॑। वृ॒त्र॒हन्त॒मेति॑ वृत्र॒हन्ऽत॑मा। या। मन्दा॒ना। चि॒त्। आ। गि॒रा ॥ आ॒ङ्गूषैः। आ॒विवा॑सत॒ इत्या॒विवा॑सतः ॥७६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उक्थेभिर्वृत्रहन्तमा या मन्दाना चिदा गिरा । आङ्गूषैराविवासतः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उक्थेभिः। वृत्रहन्तमेति वृत्रहन्ऽतमा। या। मन्दाना। चित्। आ। गिरा॥ आङ्गूषैः। आविवासत इत्याविवासतः॥७६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 76
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    पदार्थ -
    १. प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि वशिष्ठ है जो वशियों में श्रेष्ठ है, अतएव उत्तम निवासवाला है । जिस घर में पति-पत्नी का जीवन बड़ा संयमवाला होता है, वह घर 'वशिष्ठ' का घर कहलाता है। इस घर में पति-पत्नी दोनों - २. (उक्थेभिः) = प्रभु के स्तोत्रों के द्वारा (वृत्रहन्तमा) = ज्ञान की आवरणभूत वासना के अधिक-से-अधिक नाश करनेवाले होते हैं। जहाँ प्रभु का नामोच्चारण है, जहाँ महादेव का वास है, वहाँ कामदेव तो भस्म हो ही जाते हैं। इस घर में काम का सेवन नहीं होता, काम की भस्म का ही प्रयोग चलता है। जैसे स्वर्ण विष है. परन्तु स्वर्ण भस्म अमृत हो जाती है, इसी प्रकार महादेव काम की भस्म बना देते हैं और वह भस्म प्रजा - निर्माण द्वारा मनुष्य को अमर कर देती है। ३. ये पति-पत्नी वे हैं (या) = जो (चित् आ) = निश्चय से, सर्वथा गिरा वेदवाणी से, ज्ञान की वाणियों से (मन्दाना) = आनन्द अनुभव करते हैं। इन्हें स्वाध्याय के द्वारा ज्ञान प्राप्ति में आनन्द का अनुभव होता है। ४. ये पति-पत्नी (आंगूषैः) = उच्च स्वर से गाये जानेवाले [आघोष] स्तोत्रों से (आविवासतः) = प्रभु की परिचर्या करते है। जिस घर में मिलकर इस प्रकार प्रभु-स्तवन होता है, वहाँ बुराइयों का प्रवेश नहीं होता। वह घर अधिक और अधिक सुन्दर बनता जाता है। इस घर के पति-पत्नी 'इन्द्र + अग्नि' होते हैं। पति धन कमानेवाला व शक्तिशाली 'इन्द्र' होता है तो पत्नी घर को सदा प्रकाशमय रखनेवाली और आगे ले चलनेवाली 'अग्नि' होती है।

    भावार्थ - भावार्थ- आदर्श गृह में पति 'इन्द्र' होता है और पत्नी 'अग्नि'।

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